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नज़्म
वो सारे ख़्वाब थे क़स्साब जो देखा किया हूँ मैं
ख़राश-ए-दिल से तुम बे-रिश्ता बे-मक़्दूर ही ठहरो
जौन एलिया
नज़्म
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो 'रूही' की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
ख़फ़ा जब ज़िंदगी हो तो वो आ के थाम लेते हैं
रुला देती है जब दुनिया तो आ कर मुस्कुराते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मगर इक बात पूछूँ तुम ख़फ़ा तो हो न जाओगे
ये आख़िर क्या सबब है आज कल नज़्में नहीं लिखते
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
उनके दिल जब होंगे याद-ए-मासियत से पाश पाश
तेरे रुख़ पर एक भी होगी न माज़ी की ख़राश
जोश मलीहाबादी
नज़्म
तमतमाए हुए आरिज़ पे ये अश्कों की क़तार
मुझ से इस दर्जा ख़फ़ा आप से इतनी बेज़ार