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नज़्म
है अगर अर्ज़ां तो ये समझो अजल कुछ भी नहीं
जिस तरह सोने से जीने में ख़लल कुछ भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
''ख़लल-पज़ीर बुअद हर बिना कि मय-बीनी
ब-जुज़ बिना-ए-मोहब्बत कि ख़ाली अज़-ख़लल-अस्त''
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बदली हुई दुनिया में तग़य्युर का अमल है
तू किर्म-ए-किताबी नहीं इक किर्म-ए-ख़लल है
अज़ीज़ हामिद मदनी
नज़्म
काशिफ़ रफ़ीक़
नज़्म
काली बिल्ली ने ये भी नहीं सोचा कि मैं किसी नींद में ख़लल हो रही हूँ
उस को तो चूहों से मतलब है
मुग़नी तबस्सुम
नज़्म
काश लेते तुझ से ये इंसान भी दर्स-ए-अमल
फिर दिमाग़ों में न रहता इस क़दर उन के ख़लल
साक़िब कानपुरी
नज़्म
मैं ने सहे हैं दुख पे दुख उम्र कटेगी यास में
तब्अ' को इंतिशार है और ख़लल हवास में