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नज़्म
ख़्वाब-दर-ख़्वाब जलें लज़्ज़त-ए-इम्काँ के चराग़
और मिल जाएँ सभी तिश्ना सवालों के जवाब
सुहेल अहमद
नज़्म
मैं ने इक दिन ख़्वाब में देखा कि इक मुझ सा फ़क़ीर
गर्दिश-ए-पैमाना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा का असीर