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नज़्म
हर तबस्सुम में तुझे शाइबा-ए-ग़म दिखलाऊँ
ख़ून-ए-नाहक़ पे जो होता है वो मातम दिखलाऊँ
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
बाम-दर-बाम थी बे-मेहर निगाहों की सलीब
हर झरोके में थी इक शाम मह-ओ-ख़ुर की रक़ीब
मुसव्विर सब्ज़वारी
नज़्म
ये माना मग़रिबी तालीम ने पर्वाज़ बख़्शी है
ये माह-ओ-ख़ुर भी बन जाएँगे अब क़िंदील का शाना