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नज़्म
ख़ुशा वो दौर-ए-बे-ख़ुदी कि जुस्तुजू-ए-यार थी
जो दर्द में सुरूर था तो बे-कली क़रार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
वो ये कहते हैं तू ख़ुश-नूद हर इक ज़ुल्म से है
वो ये कहते हैं हर इक ज़ुल्म तिरे हुक्म से है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आया हमारे देस में इक ख़ुश-नवा फ़क़ीर
आया और अपनी धुन में ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़र गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हमारे दामन-ए-अफ़्कार पर तेरा ही साया है
ख़ुशा स्कूल कि हम ने तुझी से फ़ैज़ पाया है