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नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
किस में हिम्मत थी कि बदले ज़िंदगानी के पुराने ख़ोल को
हम से सरकश को दिया करते थे नाम
बाक़र मेहदी
नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
कहे मछली कि मैं जाऊँगी अपने पैर पर चल कर
अगर कछवा कहे मुझ को निकालो ख़ोल से बाहर