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नज़्म
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अभी तो क़ौम ने 'नेहरू' का ग़म उठाया था
अभी तो दास की फ़ुर्क़त ने हश्र ढाया था
आफ़ताब रईस पानीपती
नज़्म
दिल दहल जाता है जिस भी वक़्त करते हैं ख़याल
तेरी रामायण न होती गर तो होता कैसा हाल
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
फ़ख़्र-ए-शंकर हैं रुला-राम और मथुरा-दास भी
क़ाबिल-ए-इज़्ज़त नरिंदर-सिंह से सयास भी
अर्श मलसियानी
नज़्म
दौर-ए-'अफ़लातून'-ओ-'तुलसी-दास' से 'इक़बाल' तक
हिस्ट्री कल शाइ'रों की इस कमेटी ने पढ़ी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
वो तुलसीदास जिस ने इल्म का दरिया बहाया था
वो तुलसीदास जिस ने ग़ैर को अपना बनाया था