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नज़्म
अन-पढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया
दुनिया-ए-इल्म-ओ-दानिश का रास्ता दिखाया
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानी
कोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अहल-ए-दानिश का रजज़ और सीना-ए-दहक़ाँ की ढाल
लश्कर मज़दूर के हैं हम-सफ़ीर ओ हम-रिकाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
अहल-ए-दानिश 'आम हैं कमयाब हैं अहल-ए-नज़र
क्या त'अज्जुब है कि ख़ाली रह गया तेरा अयाग़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कोई फ़ल्सफ़ा कोई पाइंदा अक़दार नहीं, मेआर नहीं है
इस पर अहल-ए-दानिश विद्वान, फ़लसफ़ी
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
दानिश-ओ-हिक्मत की सारी रौशनी के बावजूद
कम ही मिलता है ज़माने में कम-आज़ार आदमी
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
थे हकीम-ए-शर्क़ से शैख़-ए-मुजद्दिद हम-कलाम
गोश-बर-आवाज़ सब दानिश-वरान-ए-इल्म-ओ-दीं