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नज़्म
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आँख पर होता है जब ये सिर्र-ए-मजबूरी अयाँ
ख़ुश्क हो जाता है दिल में अश्क का सैल-ए-रवाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मेरे बरबत के सीने में नग़्मों का दम घुट गया
तानें चीख़ों के अम्बार में दब गई हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
शाही दरबारों के दर से फ़ौजी पहरे ख़त्म हुए हैं
ज़ाती जागीरों के हक़ और मोहमल दा'वे ख़त्म हुए हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
और उस के बालों का रेशम पानी में मिल जाएगा
लहर की इक दीवार गिरी और बुलबुले दब कर टूट गए