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नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
शाही दरबारों के दर से फ़ौजी पहरे ख़त्म हुए हैं
ज़ाती जागीरों के हक़ और मोहमल दा'वे ख़त्म हुए हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़र्च का टोटल दिलों में चुटकियाँ लेता हुआ
फ़िक्र-ए-ज़ाती में ख़याल-ए-क़ौम ग़ाएब फ़िल-मज़ार
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
हुआ वो हाथ ग़ाएब जो कि मेरी ज़ात पर होते
हुए हर वार को बढ़ बढ़ के ख़ुद पर रोक लेता था
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
तिरा हुस्न-ए-नज़र महदूद है ज़ाती मक़ासिद तक
तिरी ये शपरा-चश्मी ही तुझे बरबाद कर देगी