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नज़्म
किसी फ़ैसले किसी राय में तेरा कोई हवाला नहीं
तुझे वहशी बनाने वाले तेरे अध मरे अस्लाफ़
इंजिला हमेश
नज़्म
अब भी ख़िज़ाँ का राज है लेकिन कहीं कहीं
गोशे रह-ए-चमन में ग़ज़ल-ख़्वाँ हुए तो हैं