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नज़्म
मोर-ए-बे-पर हाजते पेश-ए-सुलैमाने मबर
रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा है मशरिक़ की नजात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रब्त हो जाता है दिल को नाला ओ फ़रियाद से
ख़ून-ए-दिल बहता है आँखों की सरिश्क-आबाद से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
देखो हम ने कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
सारी है बे-रब्त कहानी धुँदले धुँदले हैं औराक़
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कभी कभी दिल ये सोचता है
न जाने हम बे-यक़ीन लोगों को नाम-ए-हैदर से रब्त क्यूँ है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
अल-मुख़्तसर हों जितने सितम तुझ पे टूट जाएँ
लेकिन ये रब्त-ए-ज़ीस्त न टूटे ख़ुदा करे