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नज़्म
इस से बद-तर लत नहीं है कोई ये लत छोड़िए
रोज़ अख़बारों में छपता है कि रिश्वत छोड़िए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
देखो वो जाती है रिश्वत से ख़रीदी हुई कार
सेहन-ए-गुलशन में हो जैसे गुज़राँ मौज-ए-बहार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मेरे लिए इक टूटा छप्पर ख़ुद अपनी मुसलसल मेहनत का
तेरे लिए इक पीली कोठी आईना सरापा रिश्वत का
सलाम संदेलवी
नज़्म
घूस दलाली का सब पैसा डाल बिदेसी बैंकों में
रिश्वत-ख़ोर अफ़सर और नेता कब तक ख़ैर मनाएँगे
सदा अम्बालवी
नज़्म
मुझ को रिश्वत ख़ूब खाने की भी आज़ादी है आज
दूध में पानी मिलाने की भी आज़ादी है आज