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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रूह-ए-'सर-सय्यद' से रौशन तेरा मय-ख़ाना रहे
रहती दुनिया तक तिरा गर्दिश में पैमाना रहे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ऐ कि तेरा मुर्ग़-ए-जाँ तार-ए-नफ़स में है असीर
ऐ कि तेरी रूह का ताइर क़फ़स में है असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं ने जो ज़ुल्म कभी तुझ से रवा रक्खा था
आज उसी ज़ुल्म के फंदे में गिरफ़्तार हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
मिज़ाजन रोज़ा-दार-ए-शाम बारूद और गंधक हैं
और उन में नज़्म और ज़ब्त और रवा-दारी यहाँ तक हैं