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नज़्म
जा के होते हैं मसाजिद में सफ़-आरा तो ग़रीब
ज़हमत-ए-रोज़ा जो करते हैं गवारा तो ग़रीब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पहाड़ों से वो उतरे क़ाफ़िले रोज़ा-गुज़ारूँ के
गया गरमी का 'मौसम और आए दिन बहारों के
मजीद लाहौरी
नज़्म
मिज़ाजन रोज़ा-दार-ए-शाम बारूद और गंधक हैं
और उन में नज़्म और ज़ब्त और रवा-दारी यहाँ तक हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
रोज़ा ओ नमाज़ की क़ाइल है सज्दा ओ क़याम से भागती है
इस्लाम-अली की बेटी है लेकिन इस्लाम से भागती है
खालिद इरफ़ान
नज़्म
आज का दिन हम ने पाया रोज़े रख कर एक माह
रोज़ा-दारों के लिए अल्लाह का इनआ'म है
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
कि जैसे चुप का रोज़ा रख के जी चुका था चार साल की ये उम्र-ए-मुख़्तसर
अजीब मोजज़ा हुआ कि एक दिन
सत्यपाल आनंद
नज़्म
इस उम्र-ए-चंद-रोज़ा में की लाख जुस्तुजू
छानी है हम ने ख़ाक ज़माने में कू-ब-कू