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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुक़्क़ा सुराही जूतियाँ दौड़ें बग़ल में मार
काँधे पे रख के पालकी हैं दौड़ते कहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मिरे शाने पे सर तक रख दिया है गीत गाए हैं
मिरी दुनिया बदल देती हैं ख़ुश-अल्हानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कि अब तक मैं अँधेरों की धमक में साँस की ज़र्बों पे
चाहत की बिना रख कर सफ़र करता रहा हूँगा
मोहसिन नक़वी
नज़्म
اگر چاہوں تو نقشہ کھينچ کر الفاظ ميں رکھ دوں
مگر تيرے تخيل سے فزوں تر ہے وہ نظارا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सर पे रख सकता हूँ ताज-ए-किश्वर-ए-नूरानियाँ
महफ़िल-ए-ख़ुर्शीद को नीचा दिखा सकता हूँ मैं