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नज़्म
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गले में हार फूलों का चरण में दीप-मालाएँ
मुकुट सर पर है मुख पर ज़िंदगी की रूप-रेखाएँ
नज़ीर बनारसी
नज़्म
कौन भूले अमावस की रातों सी ज़ुल्फ़ों की रा’नाइयाँ
कौन दिल से हया-दार आँखों की यादें मिटा दे