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नज़्म
दश्त-ए-पुर-ख़ार को फ़िरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब!
कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बहार-ए-रंग-ओ-शबाब ही क्या सितारा ओ माहताब ही क्या
तमाम हस्ती झुकी हुई है, जिधर वो नज़रें झुका रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
फिर शबिस्तान-ए-तरब की राह दिखलाता है तू
मुझ को करना चाहता है फिर ख़राब-ए-रंग-ओ-बू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रेग-ए-दीरोज़ में ख़्वाबों के शजर बोते रहे
साया नापैद था साए की तमन्ना के तले सोते रहे