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नज़्म
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो
ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो
हबीब जालिब
नज़्म
परवीन शाकिर
नज़्म
ये सभी क्यूँ है ये क्या है मुझे कुछ सोचने दे
कौन इंसाँ का ख़ुदा है मुझे कुछ सोचने दे