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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सीने की हर एक जलन से समझौता कर के मैं ने
इन सारी बीती बातों को तारीकी में छोड़ दिया