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नज़्म
कब तलक ये कह के क़िस्मत से रहें हम शिकवा-संज
''रंज का ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
वो जो क़ाज़ी अदालत गवाह ओ सनद इल्म-ओ-दानिश और तहरीर से मुंसलिक इक रिवायत की तहज़ीब थी
वो कहीं खो गई
फ़ातिमा हसन
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पल दो पल में कुछ कह पाया इतनी ही स'आदत काफ़ी है
पल दो पल तुम ने मुझ को सुना इतनी ही ‘इनायत काफ़ी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद
कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद