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नज़्म
हम अपने चेहरे, हम अपने बातिन सँवार लेंगे
हमारी आँखों में देख अपने हसीन फ़र्दा का इक हयूला
नाहीद क़ासमी
नज़्म
ख़िज़ाँ ने पेड़ों के लिबास फेंके थे उतार कर
दुल्हन बना दिया उन्हें बहार ने सँवार कर