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नज़्म
ले के दाग़ आएगा सीने पे बहुत ऐ सय्याह
देख इस शहर के खंडरों में न जाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
ले के दाग़ आएगा सीने पे बहुत ऐ सय्याह
देख इस शहर के खंडरों में न जाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
देख सय्याह उसे रात के सन्नाटे में
मुँह से अपने मह-ए-कामिल ने जब उल्टी हो नक़ाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ग़म अज़्मत-ए-रफ़्ता का सीने में लिए अपने
सय्याह से कहता है हर ज़र्रा ये अफ़्साना
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
रियाज़ लतीफ़
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है
हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है