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मेरा घर मेरा वीराना

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

मेरा घर मेरा वीराना

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

MORE BYख़लील-उर-रहमान आज़मी

    रोचक तथ्य

    Selected from 'Kaghazi Pairahan)

    दीदनी है ये मिरा घर मिरा वीराना भी

    इस गुज़रगाह पे कुछ देर ठहर जा सय्याह

    मुझ को मालूम है तू सारा जहाँ देख चुका

    हाँ उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़ सारी ज़मीं देखी है

    तू ने ऐवान भी देखे हैं खंडर भी देखे

    वादियाँ देखीं पहाड़ों की जबीं देखी है

    मेरी दुनिया में ज़रा देख कि इस दुनिया को

    देखने वालों ने अब तक कभी देखा ही नहीं

    मैं फ़साना हूँ कोई चाहे तो मुझ को लिख ले

    पर मिरा हाल किसी ने कभी पूछा ही नहीं

    तुझ को दोस्त दिखाऊँ कि कहाँ रहता हूँ

    ये वो घर है कि जो शायद कभी हो सकता था घर

    तुझ को शायद नज़र आए मगर ये सच है

    इस के सीने में हैं पोशीदा मिरे लाल-ओ-गुहर

    ये ज़मीं उजड़ी हुई टूटी हुई है दीवार

    पर इसी कोख में धरती की है सरमाया मिरा

    मैं जो इस वक़्त नज़र आता हूँ ये मैं नहीं हूँ

    मेरी तस्वीर है धुँदला सा है ये साया मिरा

    मिरी तस्वीर की आँखों में बसा है इक शहर

    इस में हैं ऊँचे महल जो मैं बना सकता था

    इस में हैं मेरी वो ख़ुशियाँ कि जो मिल सकती थीं

    इस में है मेरी वो मंज़िल जो मैं पा सकता था

    इस में हैं मेरी मोहब्बत के वो सारे अरमाँ

    जिन से महरूम रहा मेरा ये बेदार शबाब

    इस में हैं मेरी किताबें कि जो लिक्खी गईं

    इस में हैं मेरे वो अशआर नहीं जिन का जवाब

    हाँ यहीं दफ़्न हैं वो सारी किताबें जिन को

    ज़िंदगी देती जो फ़ुर्सत तो मैं लिख सकता था

    इसी मिट्टी में हैं वो नज़्में वो ग़ज़लें मेरी

    जिन को कहने कोई देता तो मैं कह सकता था

    मेरे सय्याह बहुत तू ने मक़ाबिर देखे

    सच कहा सदियों में इक ताज-महल बनता है

    हाँ मगर मेरी तरह रोज़ ही इंसाँ कोई

    ज़िंदा रहने के लिए दहर में मर जाता है

    स्रोत:

    Intikhab-e-Kalam Khalil-ur-Rahman Azmi (Pg. 15)

    • लेखक: shaheryaar
      • संस्करण: 2010
      • प्रकाशक: Uttar Pradesh, Urdua Akademi, Lucknow
      • प्रकाशन वर्ष: 2010

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