aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "صاحب_انصاف"
बे-लौस मोहब्बत का सिला दाइमी फ़ुर्क़तऐ साहब-ए-इंसाफ़ ये इंसाफ़ कहाँ है
वाँ सब अहल-ए-दर्द हैं सब साहब-ए-इंसाफ़ हैंरहबर आगे जा चुका राहें भी तेरी साफ़ हैं
अब साहब-ए-इंसाफ़ है ख़ुद तालिब-ए-इंसाफ़मोहर उस की है मीज़ान ब-दस्त-ए-दिगराँ है
'अद्ल-ओ-इंसाफ़ की बुरी एनडिंग हैभाई साहब ये ट्रेंडिंग है
हक़ बात है इस दौर में तख़रीब-पसंदीबातिल की सताइश में है इंसाँ की बुलंदी
मस्जिदें मर्सियाँ-ख़्वाँ हैं कि नमाज़ी न रहेयानी वो साहिब-ए-औसाफ़-ए-हिजाज़ी न रहे
शर्त इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीमबू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम
झूट की गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ से लाऊँरक़्स-ए-बे-मा'नी की झंकार कहाँ से लाऊँ
ऐ सिपहर-ए-बरीं के सय्यारोऐ फ़ज़ा-ए-ज़मीं के गुल-ज़ारो
सद्र-ए-जमहूरिया-ए-हिन्दयक़ीनन आप फ़ख़रुद्दीन भी नाज़-ए-उमम भी हैं
ऐ परस्तार-ए-अदब रूह-ए-अदब शाह-ए-सुख़नज़ात से तेरी मुनव्वर थी अदब की अंजुमन
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