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नज़्म
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो ताक़-ए-हरम में रौशन है वो शम्अ यहाँ भी जलती है
इस दश्त के गोशे गोशे से इक जू-ए-हयात उबलती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ताक़ में शम्अ के आँसू हैं अभी तक बाक़ी
अब मुसल्ला है न मिम्बर न मुअज़्ज़िन न इमाम
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
गर्म हो तेज़ाब की खौलन से लाले का अयाग़
ग़ुंचा-ए-नौरस का ताक़ और पीर-ए-मकतब का चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
थोड़ी सी मिठाई ताक़ पे थी मुट्ठी में चुराए बैठे हैं
अब्बू के भगाए भागे थे अम्मी के बुलाए बैठे हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
एक पाँव पे खड़े सारे सुतूँ थक से गए हैं
ख़ुर्दा दाँतों की तरह हिलती हैं हर ताक़ में ईंटें
गुलज़ार
नज़्म
पहले थीं वो शोख़ियाँ जो आफ़त-ए-जाँ हो गईं
''लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं''