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नज़्म
मुंतज़िर है एक तूफ़ान-ए-बला मेरे लिए
अब भी जाने कितने दरवाज़े हैं वा मेरे लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मुसलमाँ को मुसलमाँ कर दिया तूफ़ान-ए-मग़रिब ने
तलातुम-हा-ए-दरिया ही से है गौहर की सैराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
گريہ ساماں ميں کہ ميرے دل ميں ہے طوفان اشک
شبنم افشاں تو کہ بزم گل ميں ہو چرچا ترا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़ुल्म और इतना कोई हद भी है इस तूफ़ान की
बोटियाँ हैं तेरे जबड़ों में ग़रीब इंसान की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क़स्र-ए-गीती में उमँड आया है तूफ़ान-ए-हयात
मौत लर्ज़ां है पस-ए-पर्दा-ए-दर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिल के हर क़तरे में तूफ़ान-ए-तजल्ली भर दे
बत्न-ए-हर-ज़र्रा से इक महर-ए-मुबीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
मिरे शाने पे जब सर रख के ठंडी साँस लेती थी
मिरी दुनिया में सोज़-ओ-साज़ का तूफ़ान आता था