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नज़्म
ज़रा सी फिर रुबूबियत से शान-ए-बे-नियाज़ी ली
मलक से आजिज़ी उफ़्तादगी तक़दीर शबनम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नज़र से तमकनत ले कर मज़ाक़-ए-आजिज़ी दे दे
मगर हाँ बेंच के बदले उसे सोफ़े पे बिठला दे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो साथी हो के आजिज़ सामने फ़रियाद लाता है
क्लास उस बेबसी पर चुपके चुपके मुस्कुराता है
शमीम करहानी
नज़्म
बिलाल अहमद
नज़्म
क्या ख़ता मेरी कि जो बच्चा हुआ जुड़वाँ हुआ
और मआ हम-ज़ाद आजिज़ ही के घर मेहमाँ हुआ