aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "عجائب"
मोर कबूतर और तीतर हैअंदर मुर्दा अजाइब घर है
मिरी पस-मांदगी पर हर नज़र उट्ठे तरस खाएमुझे मुर्दा अजाइब-घर की ऐसी मूर्ती समझे
يہ عجائب شعبدے کس کي ملوکيت کے ہيں راجدھاني ہے ، مگر باقي نہ راجا ہے نہ راج
जो मैं नेअजाइब-घर की सीढ़ियों पर
मगर वो पत्थर कि अब अजाइब की कारगह हैंतुम्हारे नामे की उस इबारत को खा गए हैं
सफ़ीर-ए-लैला ये सब करिश्मे इसी खंडर ने मिरी जबीं पर लिखे हुए हैंयही अजाइब हैं जिन के सदक़े यहाँ परिंदे न देख पाओगे
हमारे बाद ज़मीं के तले सो रहे हैंअजाइब-घरों में लटकती हैं तलवारें उन की
दिल के अंदर ग़ैबी सूरज के गुल-रंग अजाइब जागेंपंज पोरों पर पाँच हिसों के फूल खिलीं
एक अजाइब-ख़ाने में ढल रहा हैकि मेरे ला-शुऊर ने
ज़िंदगी मेहनत ओ क़ुदरत के अजाइबये मशीनें ख़ुद-कार
न दुनिया-ज़ाद, न हासिब करीमुद्दीन का घर हैअजाइब-घर हैं न वो दर्स-गाहें
किस अजाइब-कदे से निकल आए होऔर जब
देखते हैं इसे टिकट ले करइस के अंदर है इक अजाइब घर
मिरे मोहन सागर सय्यारेतू खुली किताब अजाइब की
किसी ने नींद की वादी में 'उर्यानी बिखेरी थी'अजाइब-घर की सीढ़ी पर
वल्लाह कि हैं आप भी इक ज़िंदा अजाइबसहरा में अज़ाँ दे के कहाँ हो गए ग़ाएब
मेरी मौरूसियत की जड़ों में हर इक साँस लेती इकाई के ख़लियों की मिट्टी बनेरीढ़ की मरकज़ी जालियों में अजाइब-कदों का ख़ज़ाना छुपे
चलती फिरती इक दीवारदेखी अजाइब घर में 'निसार'
शायद हमसिर्फ़ अजाइब घरों में मिलें
याद हैइक दिन ‘अजाइब-ख़ाने की
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