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नज़्म
नए उनवान से ज़ीनत दिखाएँगे हसीं अपनी
न ऐसा पेच ज़ुल्फ़ों में न गेसू में ये ख़म होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
दफ़्न हैं इस में मोहब्बत के ख़ज़ाने कितने
एक उन्वान में मुज़्मर हैं फ़साने कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तुझ से जो मैं ने प्यार किया है तेरे लिए? नहीं अपने लिए
वक़्त की बे-उनवान कहानी कब तक बे-उनवान रहे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आख़िर इंसान हूँ मैं भी कोई पत्थर तो नहीं
मैं भी सीने में धड़कता हुआ दिल रखता हूँ
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मोहब्बत, इश्क़, दिलदारी, वफ़ा उनवान-ए-हस्ती हों
उख़ूवत नर्म-गुफ़्तारी अता-ए-पैमाना-ए-दिल हों
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
अपनी हर ज़र्ब का अब ख़ुद ही निशाना हूँ मैं
जुर्म उनवान हो जिस का वो फ़साना हूँ मैं
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
मैं ने जाना है कि लफ़्ज़ों के तिलिस्मी धागे
कैसे तारीख़ को उन्वान नए देते हैं