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नज़्म
ख़ुदा का शुक्र है कि तुम उन से मुख़्तलिफ़ निकले
जो फूल तोड़ के ग़ुस्से में बाग़ छोड़ते हैं
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
बे-पर्दा स्थानों पर दो उड़ते हुए गीतों की तरह
ग़ुस्से में कभी लड़ते हुए कभी लिपटे हुए पेड़ों की तरह
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
बच्चों की बात छोड़िए बेगम का है ये हाल
ग़ुस्से में यूँ समझिए कि हर शय पे है ज़वाल
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
इक तरफ़ हाजत की शिद्दत इक तरफ़ ग़ैरत का जोश
नुत्क़ पर हर्फ़-ए-तमन्ना दिल में ग़ुस्से का ख़रोश
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आप को मा'सूम बच्चों का है गर कुछ भी ख़याल
बैठे बैठे एक दम हो जाइए ग़ुस्से से लाल