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नज़्म
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये कार-ख़ानों में लोहे का शोर-ओ-ग़ुल जिस में
है दफ़्न लाखों ग़रीबों की रूह का नग़्मा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बिन मुर्दे घर में शोर मचाती है मुफ़्लिसी
लाज़िम है गर ग़मी में कोई शोर-ग़ुल मचाए
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हम उन को देते हैं बे-जान और ग़लत तालीम
मिलेगा इल्म-ए-जिहालत-नुमा से क्या उन को
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
बाज़ार गली और कूचों में ग़ुल-शोर मचाया होली ने
या स्वाँग कहूँ या रंग कहूँ या हुस्न बताऊँ होली का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तब्लों के ठुके तब्ल ये साज़ों के बजे तार
रागों के कहीं ग़ुल कहीं नाचों के बंधे तार