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नज़्म
जिस ने इस का नाम रखा था जहान-ए-काफ़-अो-नूँ
मैं ने दिखलाया फ़रंगी को मुलूकियत का ख़्वाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
राहज़न हँसने लगे छुप के कमीं-गाहों में
हम-नशीं ये था फ़रंगी की फ़िरासत का तिलिस्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
جہان نو ہو رہا ہے پيدا ، وہ عالم پير مر رہا ہے
جسے فرنگي مقامروں نے بنا ديا ہے قمار خانہ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कुछ न कुछ साथ फ़रंगी के फ़ुसूँ-साज़ भी हैं
और हम जैसे बहुत ज़मज़मा-पर्दाज़ भी हैं