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नज़्म
हों शरीक-ए-बज़्म-ए-मय ज़ाहिद भी तौबा तोड़ कर
झूमती क़िबले से उट्ठी है घटा बरसात की
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
ऐ दकन की सर-ज़मीं ऐ क़िबला-ए-हिन्दोस्ताँ
तेरे ज़र्रे मेहर हैं तेरी ज़मीं है आसमाँ
मयकश अकबराबादी
नज़्म
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में