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नज़्म
और कोई हम-नवा मिल जाए ये क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
औरत संसार की क़िस्मत है फिर भी तक़दीर की हेटी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरे क़ामत से अब क़ामत तुम्हारा कुछ फ़ुज़ूँ होगा
मिरा फ़र्दा मिरे दीरोज़ से भी ख़ुश नुमूं होगा
जौन एलिया
नज़्म
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तिरे माथे का टीका मर्द की क़िस्मत का तारा है
अगर तू साज़-ए-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
निशान-ए-बर्ग-ए-गुल तक भी न छोड़ उस बाग़ में गुलचीं
तिरी क़िस्मत से रज़्म-आराइयाँ हैं बाग़बानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तर्बियत से तेरी में अंजुम का हम-क़िस्मत हुआ
घर मिरे अज्दाद का सरमाया-ए-इज़्ज़त हुआ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह बद-क़िस्मत रहे आवाज़-ए-हक़ से बे-ख़बर
ग़ाफ़िल अपने फल की शीरीनी से होता है शजर