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नज़्म
तब-ए-मशरिक़ के लिए मौज़ूँ यही अफ़यून थी
वर्ना क़व्वाली से कुछ कम-तर नहीं इल्म-ए-कलाम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हलवे के लिए फिर आज भी हम इक आस लगाए बैठे हैं
जो बात ज़बाँ पर ला न सके वो दिल में छुपाए बैठे हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
घंटी बाँध के चूहे जब बिल्ली से दौड़ लगाते थे
पेट पे दोनों हाथ बजा कर सब क़व्वाली गाते थे
गुलज़ार
नज़्म
रंग बिरंगी चिड़ियाँ अब छेड़ें ऐसी क़व्वाली
पत्ता पत्ता बूटा बूटा ताल में देवे ताली
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
सबक़ बस खेलने खाने का जिस को याद होता है
बड़ा हो कर वो लड़का एक दिन उस्ताद होता है