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नज़्म
क़ौम मज़हब से है मज़हब जो नहीं तुम भी नहीं
जज़्ब-ए-बाहम जो नहीं महफ़िल-ए-अंजुम भी नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ग़रज़ चारों तरफ़ अब इल्म ही की बादशाही है
कि उस के बाज़ूओं में क़ुव्वत-ए-दस्त-ए-इलाही है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दुनिया को ख़ुल्द बनाने का जो ध्यान सा दिल में आता है
ऐसी ख़बरों के सुनने से वो और क़वी हो जाता है
सय्यद एहतिशाम हुसैन
नज़्म
मुंतशिर हो के ज़माने में हुआ ख़ार-अो-ज़बूँ
हो मुनज़्ज़म तो क़वी तुझ सा ज़माने में नहीं
दाऊद ग़ाज़ी
नज़्म
है इल्म ही से आबरू है इल्म ही से दिल क़वी
यही है दिल की रौशनी यही है दिल का चैन भी
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
क़वी होता है जज़्ब-ए-जुस्तुजू हर ना-मुरादी से
ब-ज़ाहिर सई-ए-पैहम राएगाँ मालूम होती है