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नज़्म
दिल में जितना आए लूटें क़ौम को शाह-ओ-वज़ीर
खींच ले ख़ंजर कोई जोड़े कोई चिल्ले में तीर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हमें मा'लूम है कि अगले वक़्तों में ये लोग
तिरे पैरों के साँचों से नई सम्तों के अंदाज़े लगाएँगे
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
थी लाग न उस के बोलों में की बात न कोई लगावट की
उस के फ़िक़रे टूटे-टूटे उस की आँखें खोई-खोई
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
औरतें बेचेंगी जब स्टेज पर बा-रक़्स-ओ-चंग
अपनी आँखों की लगावट अपने रुख़्सारों का रंग