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नज़्म
जिन्हें आशिक़ों ने चाहा कि फ़लक से तोड़ लाएँ
किसी राह में बिछाएँ किसी सेज पर सजाएँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिस के छू जाते ही मिस्ल-ए-नाज़नीन-ए-मह-जबीं
करवटों पर करवटें लेती है लैला-ए-ज़मीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सौ ज़ख़्म भी खा कर मैदाँ से हटते नहीं जुरअत-मंद कभी
वो वक़्त कभी तो आएगा जब दिल के चमन लहराएँगे
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
हँसें बोलें कहीं आवारागर्दी के लिए निकलें
चलें और चल के सारे दोस्तों को फिर बुला लाएँ
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
क़ैद भी कर दें तो हम को राह पर लाएँगे क्या
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जाएँगे क्या