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नज़्म
कुछ बता उस सीधी-साधी ज़िंदगी का माजरा
दाग़ जिस पर ग़ाज़ा-ए-रंग-ए-तकल्लुफ़ का न था
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सितम की दास्ताँ कुश्ता दिलों का माजरा कहिए
जो ज़ेर-ए-लब न कहते थे वो सब कुछ बरमला कहिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मगर मैं ने अभी जो होश की आँखों से देखा है
वो मंज़र और ही कुछ कह रहा है माजरा क्या है
इशरत आफ़रीं
नज़्म
अजीब उजलत अजीब वहशत अजीब ग़फ़लत का माजरा है
कहूँ मैं किस से मिरे ख़ुदाया ये कैसी ख़िल्क़त का माजरा है
इमरान शमशाद नरमी
नज़्म
कि दुनिया इस क़दर तब्दील होने की ख़बर तुम तक नहीं पहुँची
नहीं मा'लूम ये क्या माजरा है