गुड्डे मियाँ की शादी
गुड्डे मियाँ की शादी
हर इक सम्त गूँजे हुए क़हक़हे
हँसी दिल-लगी ज़मज़मे चहचहे
ज़मीं मुस्कुरा आसमाँ ख़ूब झूम
कि बाक़ी नगर में है शादी की धूम
यहाँ मेहमाँ और वहाँ मेहमाँ
जिधर देखिए और जहाँ मेहमाँ
ग़रज़ मेहमाँ आए हैं बे-शुमार
कि मुद्दत से इस दिन का था इंतिज़ार
नौशा बनाने की रस्म
वो गुड्डे मियाँ घर बुलाए गए
बिठा कर वो नौशा बनाए गए
हथेली पे मेहंदी रचाई गई
वो नौशा को अचकन पहनाई गई
वो गाँव का माली 'अतीक़' आ गया
वो सरसों के फूलों का सहरा बँधा
हर इक रस्म से जब फ़राग़त हुई
तो मिर्चों के फूलों की बध्धी पड़ी
वो हम-जोलियों में लगा क़हक़हा
मरासन जो बन कर उठीं 'हाशिमा'
मरासन भी ढोलक बजाने लगी
ख़ुशी के तराने सुनाने लगी
मरासन को मुँह माँगा हक़ जब मिला
ब-मुश्किल मरासन से पीछा छुटा
बारात की रवानगी
वो नौशा मियाँ पहने गोटे का हार
चले एक मेंढे पे हो कर सवार
छना-छन छना-छन बराती चले
पतीली के ढकने बजाते हुए
वो 'अन्नू' गवय्या भी गाता हुआ
फ़ज़ाओं में तानें उड़ाता हुआ
नई ज़िंदगानी मुबारक रहे
मुबारक ये शादी मुबारक रहे
बारात दुल्हन के मकान पहुँच चुकी अब निकाह का वक़्त है
'क़मर' हैं वकील और 'अक़ीला' गवाह
'सुरय्या' की गुड़िया का देखो ब्याह
वो 'रज़िया' को क़ाज़ी बनाया गया
वो नौशा को महफ़िल में लाया गया
वो क़ाज़ी वरक़ इक उलटने लगे
बराती सब इक जा सिमटने लगे
क़ाज़ी जी निकाह पढ़ाते हैं
मुसम्मात-ए-गुल दुख़्तर-ए-शैख़ 'ख़ार'
ब-महर-ए-मुअज्जल बयासी हज़ार
गुलिस्ताँ का मोती समुंदर का फूल
कहो भाई गुड्डे ये शादी क़ुबूल
छुहारों की तक़्सीम
पढ़ा कर उठे जैसे क़ाज़ी निकाह
किसी ने छुहारों की दे दी सलाह
छुहारों की थाली लुटाई गई
शकर भी मज़े ले के खाई गई
किसी ने छुहारों से टोपी भरी
शकर भी कहीं ख़ूब फाँकी गई
मगर एक साहब कमंद-ए-हवा
कहें किस से अपना अजब माजरा
ये हर चंद बचपन के हुशियार थे
छुहारों की लुट्टस पे तय्यार थे
मगर भीड़ में ऐसे कुछ ये दबे
कि हर पाँव के नीचे कुचले गए
पटा-पट छोहारे बरसते रहे
मगर ये बिचारे तरसते रहे
कोई नाक पर कोई सर पर लगा
मगर उन के मुँह तक न कोई गया
शकर आँख और कान में घुस गई
बिचारे की पूरी ही दुर्गत बनी
नतीजा ये सब जल्द-बाज़ी का था
कि इन का मज़ा किरकिरा हो गया
दुल्हन की रुख़्सती
वो छोटा सा इक बक्स लाया गया
मियाना जिसे था बनाया गया
सवारी ये दुल्हन की थी आ गई
वो बैठी दुल्हन वो हुई रुख़्सती
कहार अपने काँधे बदलते चले
मियाने पे दूल्हा की दुल्हन लिए
कुड़ुम-धुम कुड़ुम-धुम चली फिर बरात
लगी गूँजने गाने बाजे से रात
अनार और छछूंदर छुटाते हुए
निछावर के पैसे लुटाते हुए
सहर होते होते मकाँ आ गए
दुल्हन ले के गुड्डे मियाँ आ गए
बारात वापस आ कर
यही मेहमानों में है गुफ़्तुगू
कि दूल्हन है बे-शक बड़ी ख़ूब-रू
सलीक़े के ससुराल वाले भी हैं
दिखावा नहीं माल वाले भी हैं
ये सर्दी की सुब्ह और सर्दी की शाम
मगर क़ाबिल-ए-दाद हर इंतिज़ाम
ये बर्तन ये कपड़े ये कुर्सी ये मेज़
मिला है बहुत ख़ूबसूरत जहेज़
सदा फिर वो 'अन्नू' की आने लगी
फ़ज़ाओं में मस्ती लुटाने लगी
नई ज़िंदगानी मुबारक रहे
मुबारक ये शादी मुबारक रहे
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