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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मीराजी
नज़्म
सामान जहाँ तक होता है उस इशरत के मतलूबों का
वो सब सामान मुहय्या हो और बाग़ खिला हो ख़्वाबों का
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें
और जिन को अब मुहय्या हुस्नों की ढेरियाँ हैं