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नज़्म
अल-अमाँ ऐ तेरे मसनूई तबस्सुम का फ़रेब
थरथरा उठती है जिस के ज़ोर से नब्ज़-ए-शकेब
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अल-अमाँ ऐ तेरे मसनूई तबस्सुम का फ़रेब
थरथरा उठती है जिस के ज़ोर से नब्ज़-ए-शकेब