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नज़्म
ख़ाकसारी में तू अब तक शोहरा-ए-आफ़ाक़ है
मख़ज़न-ए-फ़ज़्ल-ओ-हुनर है मादिन-ए-अख़लाक़ है
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
नशीली आँखें, रसीली चितवन, दराज़ पलकें, महीन अबरू
तमाम शोख़ी, तमाम बिजली, तमाम मस्ती, तमाम जादू
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
बए के घोंसले का गंदुमी रंग लरज़ता है
तो नद्दी की रुपहली मछलियाँ उस को पड़ोसन मान लेती हैं
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
ज़िंदगी की ओज-गाहों से उतर आते हैं हम
सोहबत-ए-मादर में तिफ़्ल-ए-सादा रह जाते हैं हम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूदाद-ए-मोहब्बत फिर कहना अब मान भी जाओ रहने दो
जादू न जगाओ रहने दो फ़ित्ने न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
फिर अर्ज़ की ये मादर-ए-नाशाद के हुज़ूर
मायूस क्यूँ हैं आप अलम का है क्यूँ वफ़ूर