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नज़्म
शौकत-ए-जाह-ओ-हशम है मंज़िल-ए-मक़्सूद है
अपने बंदों की हक़ीक़त तुझ से कब मफ़क़ूद है
टीका राम सुख़न
नज़्म
और सुबूही से भरा यूँ मेहर का पैमाना है
पारसाई शैख़ की इस वक़्त सब मफ़क़ूद है