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नज़्म
औरत के होंटों पर ठप्पा अब मक़्बूल-ए-आम नहीं
हफ़्ता भर में इक दिन ''ऐसी लग़्ज़िश'' कोई ऐब नहीं
शाद आरफ़ी
नज़्म
मक़्बूल-ए-आम भी है ये हर-दिल-अज़ीज़ भी
सच बात तो ये है कि ये सब की ज़बान है
हबीब अहमद अंजुम दतियावी
नज़्म
हो रहा है इस क़दर मक़्बूल ये नुस्ख़ा कि अब
दिल बदलते रहते हैं दिन रात अर्बाब-ए-सुख़न
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
ज़िंदगी में तो सिला मैं ने न पाया हरगिज़
काम सब मेरे हों मक़्बूल-ए-ख़ुदा मेरे बाद
सुग़रा हुमयूँ मिर्ज़ा
नज़्म
अभी मरदूद-ए-दरगाह-ए-ख़िरद है ताबिश-ए-ईमाँ
अभी मक़्बूल-ए-आलम ज़ुल्मत-ए-औहाम है साक़ी
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
शौकत आबिदी
नज़्म
सादगी रुख़ पर कहाँ ज़ौक़-ए-नज़र की भूल है
ये वो तेवर है कि हर अंदाज़ में मक़्बूल है