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नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
भला कब तक ये मंज़र साथ देता!
'ख़ुदा-हाफ़िज़' के लम्हे बाद दरवाज़ा मुक़फ़्फ़ल हो चुका था
अंजुम ख़लीक़
नज़्म
को इक बार हसरत से तक लो
फिर उन को हिफ़ाज़त से अपने दिलों के मुक़फ़्फ़ल दराज़ों में रख लो!
मजीद अमजद
नज़्म
अय्यूब ख़ावर
नज़्म
इरफ़ान शहूद
नज़्म
ख़्वाब-ए-देरीना की ता'बीर बना कर तुझ को
अपनी आँखों के किवाड़ों में मुक़फ़्फ़ल कर लूँ
मोहम्मद ओवैस मालिक
नज़्म
मुझे ये डर है न बुझ जाए तेरी शम-ए-हयात
चल अब कि चल के मुक़फ़्फ़ल करें ये दरवाज़े