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बरहना

मजीद अमजद

बरहना

मजीद अमजद

MORE BYमजीद अमजद

    फ़रंगी जरीदों के औराक-ए-रंगीन

    हँसती, लचकती, धड़कती, लकीरें

    कटीले बदन तेग़ की धार जैसे!

    लहू रस में गूँधे हुए जिस्म, रेशम के अम्बार जैसे!

    निगह जिन पे फिस्ले, वो शाने वो बाहें

    मुदव्वर उठानें, मुनव्वर ढलानें,

    हर इक नक़्श में ज़ीस्त की ताज़गी है

    हर इक रंग से खौलती आरज़ूओं की आँच रही है!

    ख़ुतूत-ए-बरहना के इन आईनों में

    हसीं पैकरों के शफ़्फ़ाफ़ ख़ाके

    कि जिन के सजल रूप में खेलती हैं

    वो ख़ुशियाँ जो सदियों से बोझल के ओझल रही हैं!

    उन्हें फूँक देगी बे-मेहर दुनिया

    फ़रंगी जरीदों के औराक़-ए-रंगीन

    को इक बार हसरत से तक लो

    फिर उन को हिफ़ाज़त से अपने दिलों के मुक़फ़्फ़ल दराज़ों में रख लो!

    स्रोत :
    • पुस्तक : Jalta Hai Badan (पृष्ठ 123)
    • रचनाकार : Zahid Hasan
    • प्रकाशन : Apnaidara, Lahore (2002)
    • संस्करण : 2002

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