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नज़्म
मैं इक नंगीन-ए-बूदश हूँ प तुम तो सिर्र-ए-मुनअम हो
तुम्हारा बाप रूहुल-क़ुद्स था तुम इब्न-ए-मरयम हो
जौन एलिया
नज़्म
मैं ने मुनइ'म को दिया सरमाया दारी का जुनूँ
कौन कर सकता है इस की आतिश-ए-सोज़ाँ को सर्द
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
گدائي ميں بھي وہ اللہ والے تھے غيور اتنے
کہ منعم کو گدا کے ڈر سے بخشش کا نہ تھا يارا
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक भूली हुई तहज़ीब के पुर्ज़े से बिछे थे हर-सू
मुंजमिद लावे में अकड़े हुए इंसानों के गुच्छे थे वहाँ