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नज़्म
तू मुवह्हिद है कि रहमत है तिरी फ़िक्र-ओ-नज़र
जिस का पंजाब पे साया है वही तू है शजर
मोअज़्ज़म अली खां
नज़्म
गो ये धड़का है कि हूँगा मूरिद-ए-क़हर-ओ-इताब
कह भी दूँ जो कुछ है दिल में ता-कुजा ये पेच-ओ-ताब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जो कोशिश मुत्तहिद हो कर कहीं इक बार हो जाए
यक़ीं है मुल्क की क़िस्मत का बेड़ा पार हो जाए
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
अपने पंखों में मूँद के आँखों से ओझल हो जाते हैं
राहत जैसे ख़्वाब है ऐसे इंसानों का
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ब-हर-उनवाँ यही इक पेशवा-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी है
ग़लत है एशिया में मोरिद-ए-इल्ज़ाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
अज़रा नक़वी
नज़्म
अपने मुँह से कह रही है साफ़ उर्दू की ज़बाँ
मौलिद-ओ-मावा है मेरा किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ
सफ़ी लखनवी
नज़्म
मिरी मजबूरियों को भी बहुत कुछ दख़्ल है इस में
तुझी को मोरीद-ए-इल्ज़ाम मैं ठहरा नहीं सकता